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ॐ शमः शिवायः

श्री शिव का महा योगेश्वर रूप में अवतार हो चुका हैं। प्रमाण निम्न कथा अनुसार स्वयं ले।

यहां जो बातें लिखी जा रही हैं वे पूर्ण सत्‍य व यथार्थ हैं विश्‍वास करें। सीधे दिव्‍य कैलाश के हैं। शिव योगेश्‍वर देव कार्य हेतु आये इस धरा पर। यह कार्य अब समाप्ति पर है। गुप्‍त – अज्ञात रूप से कैलाश में रहकर अपना जीवन वे बिता रहे हैं। भीड़-चमत्‍कार-कीर्ति से परे रहकर शांति पूर्वक आत्‍म प्रेम में खोये रहते हैं। नम: शँ शिवाय दिव्‍य मंत्र को श्रद्धा विश्‍वास पूर्वक कुछ दिन नित्‍य स्‍मरण करने या एक माला नित्‍य जपने पर शिव योगेश्‍वर को भारत के किसी भी शिवलिंग में देख सकते हैं। उनके प्रति मात्र आत्‍मभाव रखना है। मंत्र स्‍मरण कर प्राणि प्रमाण स्‍वयं लें। उनका तीनों देवों देवियों से सीधा संबंध है। उनका प्रभाव सूक्ष्‍म रूप से लागू होता है, स्‍थूल नहीं। उनके बाद शिव स्‍थान में सम्‍पूर्ण साहू समाज तथा सम्‍पूर्ण छत्‍तीसगढ़ के प्राणि श्रद्धा से माथा टेकने व दर्शनार्थ आयेंगे। श्री दुर्गामाता प्रत्‍यक्ष उनके पास कई बार आकर, बातें कर गयी हैं। उनका स्‍थान विश्‍व का श्रेष्‍ठ प्रसिद्ध, सिद्धपीठ होगा तथा र्इश्‍वरीय न्‍याय केन्‍द्र होगा। उनका ग्रंथ विराट रहस्‍य विश्‍व का श्रेष्‍ठ धर्मग्रंथ होगा। जो आगम-निगम युक्‍त होगा। श्री सूर्य-शिव-चंद्र-रूद्र-गंगा-गायत्री-दुर्गा-श्री राम-श्रीकृष्‍ण-श्री विष्‍णु-गणेश देव आदि सभी उनके पास प्रत्‍यक्ष अनेकों बार आ चुके हैं। श्री कबीरदास, तुलसीदास एवं श्री अत्रि व आदिशंकराचार्य भी। उन्‍होंने अनेकों दिव्‍य महा‍शक्तियों का प्रत्‍यक्ष दुग्धपान (स्‍तनपान किया है) शिशु रूप में। पत्र को विचार पूर्वक विश्‍वास रख, पढ़़ें। श्रद्धालुजन अपने-अपने ईष्‍ट देव या देवी का सहस्‍त्र नाम(1000 नाम) अवश्‍य पढ़े। नित्‍य एवं पाठ पूर्व 11 बार नम; शँ शिवाय पढ़ें तथा देवी पाठ समय ओम शँ दुर्गायै नम; पढ़ें। यह सर्वकामनाप्रद है। अनुभव कर देखें। धैर्य या विश्‍वासपूर्वक पढ़ें। सर्वविध्‍न, बाधा निवारक, रक्षक व सहायक है।

इस समय श्री शिव योगेश्‍वर अज्ञात रूप से कैलाश में है। अपने ईष्‍ट देव को आत्‍मा जाने व ईष्‍ट देवी को आत्‍मशक्ति जानें। यह पत्र सुरक्षित रखेंगे प्रमाण हेतु। उनके बाद सम्‍पूर्ण भारत शिवमय, अध्‍यात्‍ममय होगा। नम: शँ शिवाय दिव्‍य मंत्र है। रोग-शोक-संकटनाशक, प्रसन्‍न कर और शांति दायक है। शँ का अर्थ सुख, शांति, कल्‍याणप्रद है। उपनिषद एवं वेद प्रमाणित है। वास्‍तुदोष, ग्रहदोष नाशक और दुखहर्ता है। श्री शिव के हृदय मध्‍य और श्री दुर्गा के हृदय
मध्‍य भी उन्‍हें देख सकेंगे श्रद्धालु। उनके वचन में पूर्ण विश्‍वास करके। 1995 में जो श्री गणेश द्वारा दुग्धपान हुआ वह उनके ही निमित्‍त था। आगे उनका दैविक प्रमाण लोगों को शिव मंदिर और शक्ति मंदिर में सर्वत्र प्रत्‍यक्ष देखने मिलेगा। वे किसी के लिए कुछ नहीं कर सकते। उनके वचन पर विश्‍वास रख प्राणि स्‍वयं लाभ उठायें (संकल्‍प करके) उनका स्‍थान द्वितीय काशी कहलायेगा। उनके शिव योगेश्‍वर (दिव्‍य शिव योगेश्‍वर) का वर्णन शिव पुराण में है। शिव अवतार। कलौ देवो महेश्‍वर;। बड़े-बड़े दार्शनिक-वैज्ञानिक उनके बारे में खोज करेंगे। विदेशों में भी शिवलिंग की स्‍थापना होगी। विदेशी भी उनके प्रति श्रद्धाभाव रखेंगे। गीता की वाणी और उनकी वाणी में अभिन्‍नता मिलेगी। क्‍योंकि श्री कृष्‍ण से उनका अभिन्‍न, दिव्‍य और नित्‍य संबंध होगा। श्री वेदव्‍यास ने उन्‍हें तीन बार हृदय से आलिंगन किया और श्री राम के भ्राता भरत ने एक बार। उन्‍हें महादेव तथा महाशक्ति की अमोघ कृपा व आशीर्वाद प्राप्‍त है। जो लिखा वह पूर्ण सत्‍य व सही है। धैर्य व श्रद्धा रख प्रमाण लें। कोई स्‍वार्थ नहीं। तीन वर्षों में शिव कृपा प्राप्‍त होगा। उनके बाद आध्‍यात्मिक संदेश छत्‍तीसगढ़ संदेश छत्‍तीसगढ़ से सम्‍पूर्ण विश्‍व को मिलेगा। छोटे बालक उन्‍हें शिव रूप में शीघ्र देख पायेंगे। श्रद्धा से। उनके अनायास प्रग्रट हेतु समय की प्रतिक्षा करें।
    श्रद्धा उमा, विश्‍वास, शिवास्‍तु और प्राणि का संयोग समय पर ही होता है। हर रूद्र, हर रूद्र, रूद्र-रूद्र, हर-हर। हर शिव-हर शिव, शिव शिव, हर-हर।। कीर्तन मंत्र है।
एस.डी साहू
बोरसी, छत्तसगढ़

परम शिवम् परम सत्‍यं परम सुंदरम्

।। ॐ नमः शिवायः ।।

यह लेख परम व्‍यापक वेश, परम विभु, परमतत्‍व, परमकल्‍याण स्‍वरूप परमपावन परमप्रभु की प्रेरणा से लिखा जा रहा है। जो अनुभव किया, देखा, सुना,(प्रत्‍यक्ष) वही लिखा जा रहा है। किंचित् संदेह ना करें। परमपरमात्‍मा की अमोध-असीम-परमपिता की कृपा से कुछ भी संभव नहीं हमारे जैसा ना अबतक कोई आया है ना आयेगा यह देववाणी है। अब तक पृथ्‍वी पर जितने भी संत म‍हर्षि आये प्राणी मात्र के हित के लिये, किंतु हमारा आना दिव्‍य अदृश्‍य अतिन्द्रिय शक्तियों के लिये है और हम अति दिव्‍य रहस्‍यमय देश, व्‍यापक और सूक्ष्‍मातिसूक्ष्‍म रूप से हैं। तीनों लोकों से परे समस्‍त ब्रम्‍हाण्‍डों से परे (दृश्‍य एवं अदृश्‍य)। हमारा संबंध विश्‍व की समस्‍त महा‍शक्तियों, देवियों, देवों, महर्षियों, नागों, सिद्ध पुरूषों से सीधे है महाशक्तियों, महाग्रहों से भी नवग्रहों, महाकालों, पंचदेवों, सप्‍तर्षियों, महाप्रकृति आदि से भी यह पूर्ण सत्‍य है। पृथ्‍वी पर हुए पूर्व संत आत्‍मनैष्ठिक सिद्ध दशावतार देव स्‍वयं आकर मिले। दिव्‍य नदियॉं, पर्वत एवं तीर्थ भी आये प्रत्‍यक्ष वेद भी आये। हमारे द्वारा लिखित मूल लेख सुरक्षित है। हमने आत्‍मा, सभी ब्रम्‍हाण्‍डों के अदृश्‍य रहस्‍य खोल दिेये है, जो अन्‍य के लिये भी असंभव था। हम जगत् गुरू आदि शंकराचार्य हैं (प्रत्‍यक्ष) पूर्व शंकराचार्य से भी कई गुना आगे एवं नाम शंकरानंद रखा गया। साहू समाज के ‘’आदि परमदेव’’ (साक्षात्) कहलायेंगे। समस्‍त निष्‍ठावान के सत्‍य संकल्‍प पूर्ण होंगे जो हम पर श्रद्धा रखेंगे। आत्‍मस्‍वरूप के व्‍यापक भाव से एवं बाधायें दूर होंगी, संकट व विपत्ति दूर हटेंगे एवं शॉंति मिलेगी।

हम स्‍वरूप से ‘’चिन्‍मय दिव्‍य भारत व विदेशों के सभी मंदिरों, गिरिजाधरों, मस्जिदों, शिवलिंगों में विद्यमान हैं, देश एवं विदेशों के सभी देवों, देवियों और संतों से हमारा प्रत्‍यक्ष संबंध है। वे हमें ईष्‍टदेव परमपिता समझते है क्‍योंकि हम उनसे अतिसूक्ष्‍म तथा व्‍यापक हैं यह अमोध अकाट्य और यथार्थ वचन है। इसका प्रमाण भविष्‍य में हम स्‍वयं अपने भक्‍तों प्रेमियों एवं संतों को देंगे। पृथ्‍वी पर के महान तीर्थों, प्रसिद्ध स्‍थानों की समस्‍त देवियॉं हमारे पास प्रत्‍यक्ष आ चुकी हैं, संवाद कर चुकी और प्रस्‍थान की। सूर्य, चंद्रदेव, ध्रुव तारा, अग्नि-वायु-जल-आकाश पृथ्‍वी इन्‍हें देव रूप से देवी रूप से (पृथ्‍वी एवं महाप्रकृति को प्रत्‍यक्ष दिव्‍य रूप से (चिन्‍मय) देखा व संवाद हुआ। हिमालय पर्वत राज, देवी गंगा, देवी तुलसी, गरूड़ सुदर्शन चक्र, काकभुशुण्‍डी, हनुमान, नृसिंहदेव आदि को भी प्रत्‍यक्ष देखा संवाद किया।

नवग्रह, नवदुर्गा, सप्‍तऋषि, पंचकन्‍या एवं सप्‍तचिरंजीवियों को भी देखा, महासतीयों को भी देखा तीनों देवों श्री राम एवं श्री कृष्‍ण तथा देवी राधा व सीता को भी देखा। श्री देवर्षि ब्रम्‍हर्षियों को भी देवी दुर्गा, महाकाली, महासरस्‍वती, महागायत्री, महात्रिपुरसुंदरी को भी, श्री महात्‍मा भरत, महात्‍मा प्रहलाद, श्री ध्रुव, श्री अर्जुन, श्री विश्‍वामित्र, श्री भीष्‍म, श्री सुग्रीव, श्री विभीषण, श्री बलिराजा एवं श्री वाल्मिकी,श्रीवशिष्‍ठ, श्री अत्रि एवं देवी अन्‍नपूर्णा, देवी महालक्ष्‍मी, महारूद्राणी, महाकाल एवं देवी अंजना, श्री ऋषभ देव, श्री दुर्वासा, श्री दत्‍तात्रेय, श्री कपिलदेव (महासिद्ध) श्री वामन देव, कुन्‍ती देवी, देवी यशोदा, देवकी, कौशल्‍या एवं अदिति तथा मनु देव, सतरूप देवी, श्री दक्, श्रीमनसा देवी, श्री शेषनाग देव, श्री भैरवी महादेवी, श्री गणेश, श्री कार्तिक, श्री नंदा, श्री रूद्रदेव, श्री भैरव देव, आदि कोई भूलकर भी संदेह ना करें क्‍योंकि यह निष्‍ठा और महाव्‍यापक प्रभु का असीम कृपा, रहस्‍य का फल है (प्रत्‍यक्ष)।

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हम किसी को अपने से भिन्‍न या छोटा नहीं देखते और अपना कुछ भी नहीं समझते ना ही मन वचन कर्म से किसी को कष्‍ट पहुँचाया और न ही किसी का किंचित् अहित चाहा हमारे दो स्‍वरूप हैं, अष्‍टभुजाधारी (श्री दुर्गा सामान) एवं द्विभुज(श्रीशिव समान) परम तेजस्‍वी, परमशक्तिमान, परम व्‍यापक भारत के 12 शिवलिंगों में (प्रत्‍यक्ष) समाहित हैं। राजिम कुलेश्‍वर शिवलिंग और काशी विश्‍वनाथ लिंग में एवं सेक्‍टर -2 भिलाई के शिवलिंगों में साक्षात् विद्यमान हैं यह पूर्ण सत्‍य है। हम शिवलिंगों के ऊपर साक्षात् विराजमान हैं (परवलयाकार में)। मीनाक्षी देवी स्‍वयं विश्‍वनाथ अनेकोबार आये गये एवं सेक्‍टर-9 हनुमान मंदिर एवं काली बाड़ी सेक्‍टर -6 में मूर्ति के बाजू में प्रत्‍यक्ष विराजमान है। समस्‍त विश्‍व (ब्रम्‍हाण्‍ड) जिनकी कृपा की एक बूंद पाने के लिये ललायित रहते हैं, हम प्रत्यक्ष परम् ब्रह्म चेतन है, दिव्‍य है, पावन है। हमारे वस्‍त्रों में एवं पहनने व बिछाने के वस्‍त्रों में भी दिव्‍य व आध्‍यात्मिक परमाणु है। है।
हम तीनों लोको से (आकाश-पृथ्‍वी-पाताल) के सभी लोकों ब्रम्‍हाण्‍डों के किसी भी प्राणी से सीधे बात कर सकते हैं, उन्‍हें यही से देख सकते है एवं उनकी आवाज सुन सकते हैं। क्‍योंकि हमें अतिपरम दृष्टि प्राप्‍त है। परम दिव्‍य शक्ति परम दिव्‍य तेज और अपार गति तथा आयुध दिव्‍यशस्‍त्र, दिव्‍यास्‍त्र भी प्राप्‍त है। इस समय हम समस्‍त देवों, देवियों, महर्षियों से 11 गुना आगे हैं, हर दृष्टि से हर प्रकार से यह परम सत्‍य है यह सब परमप्रभु की कृपा प्रसाद का फल है। श्री सूर्य-अग्नि-वायु-यम-वरूण-देव-तुलसी दवी-भक्ति देवी-महाप्रकृति देवी-पृथ्‍वी देवी-आकाश देव-तारा देवी-हिमालय देव (हिमराज) अन्‍नपूर्णा देवी-नवग्रह-सप्‍तर्षि-सुदर्शन चक्र-त्रिशुल (शिवजी)-नागराज-गरूड-ऐरावत-नंदी-सिंहराज-(दुर्गा देवी)-हाथी(इंद्रदेवी)-शेषनाग-महाकाल-गोरखनाथ एवं अश्विनी देव महारूद्र-श्री वायुदेव-समुद्र देव (रामायण में) जो लिखा है। ब्रम्‍हाण्‍ड देव-तीर्थदेव (देवी)-नर्मदा देवी-मेनका देवी-चित्ररथ देवी-द्रौपती-महर्षि गौतम-कपिल देव (सिद्ध) श्री भुवनेश्‍वरी-तारादेवी-श्री कार्तिक-श्री गणेश-श्री अंजना देवी-श्री धन्‍वंतरी-अनुसूइया देवी-देवी अरूंधती-श्री याज्ञवल्‍क्‍य आदि को प्रत्‍यक्ष देखा व बात किया आशीर्वाद तेज तथा शक्ति मिली।
हमारा एक स्‍वरूप और है, वह है एक ओर भगवान शिव एवं एक ओर भगवान नारायण बीच में हम, इस प्रकार यह स्‍वरूप अति पावन व कल्‍याणमय है। बहुत दिनों तक भगवान श्री कृष्‍ण हमारे हृदय में थे उनका अपार स्‍नेह व कृपा मिली। देवी राधा एवं देवी सीता कई बार आये हमारे पास तथा मीराबाई व कर्माबाई भी चरण स्‍पर्श करके गये। भगवान नारायण और भगवान शिव की शक्ति व तेज से उत्‍पन्‍न महाव्‍यापक-महाकाल-शक्ति को देखा और चरण स्‍पर्श किया व आशीर्वाद प्राप्‍त किया जो धर्मराज से बहुत बड़ी महान और व्‍यापक है। जिसे कोई देख नहीं सकता। जो श्री धर्मराज की परम जननी है। समस्‍त त्रैलोक्‍य के देव देवियों महर्षियों नागों के ऊपर परे व्‍यापक भी विराट शक्ति है विराट पुरूष है जिनका उल्‍लेख किसी ग्रंथ में नहीं है, किसी ने देखा नहीं कोई जानता नहीं इस परम पुत्र को अवसर मिला इसने प्रत्‍यक्ष देखा अनुभव किया और बातें की। उन्‍होंने इसे अपने परमपुत्र रूप में स्‍वीकार भी किया स्‍तनपान भी कराया सिर में हाथ रख अपना अमोध आशीर्वाद भी दिया।

मंदिर में स्वेच्छा से किया गया दान

दीनदयाल 3 लाख
पूर्णानंद साहू 4 लाख
घनश्याम साहू 3 लाख